तुम आज भी मुझमे पैदा करती हो,
जीने की तमन्ना ,
उड़ने की चाहत,
और दौड़ कर कस के तुम्हे बाँहों मे भर लेने की चाहत.
पर क्या करूँ,
तुमने ही तो मेरे इस जीवन मे विष का संचार किया.
तुमने ही तो मेरे पर कतरे.
तुमने ही तो मेरे और अपने बीच समंदर सा फासला पैदा कर लिया.
मैं थक गया हूँ,
तुम्हे देवी और चुड़ैल के अंतर्विरोधी स्वरूपों मे देखते हुए.
भावनाओ की नदी के दोनो ओर दौड़ते हुए.
अब तो एक ही विनती हैं तुमसे मेरी की
मुझे अब मुक्त कर दो.
Monday, June 21, 2010
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