Thursday, June 3, 2010

मकानमालिक

मुझे एक नया घर तलाशना हैं.

एक समय,
जब तुमने मुझे अपने अपने घर मे पनाह दिया था.
मैने तुम्हारे घर को ही अपना घर समझ लिया था.
तुम्हारे बिस्तर को ही अपना बिस्तर और
तुम्हारे गुसलखाने को ही अपना गुसलखाना समझ लिया था.

मैने भी तो भरे थे उसके दीवारों पर रंग तुम्हारे साथ मिल कर
और लगाए थे उसके बगीचे मे गुलाब के फूल
ये सोच कर की हमारा ये घर हमेशा खिलखिलता रहेगा
इन गुलाबी फूलों की तरह.

पर एक दिन हर एक मकानमालिक की तरह तुमने,
मुझे अपने घर से निकल जाने का फरमान सुना ही दिया.
शायद कुछ और लोग, तुम्हारे अपने आने वाले थे और
अब तुम्हारे घर मे मेरे लिए लिए अब जगह ना थी.

मैं एकाएक गृहस्थ से सड़क पर था.
पर सच कहता हूँ,
सड़क पर सोते हुए भी, मेरे आलिंगन मे तुम ही थी.
इस उम्मीद के साथ की कल फिर हम वो घर साझा करेंगे.

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