तुम आज भी मुझमे पैदा करती हो,
जीने की तमन्ना ,
उड़ने की चाहत,
और दौड़ कर कस के तुम्हे बाँहों मे भर लेने की चाहत.
पर क्या करूँ,
तुमने ही तो मेरे इस जीवन मे विष का संचार किया.
तुमने ही तो मेरे पर कतरे.
तुमने ही तो मेरे और अपने बीच समंदर सा फासला पैदा कर लिया.
मैं थक गया हूँ,
तुम्हे देवी और चुड़ैल के अंतर्विरोधी स्वरूपों मे देखते हुए.
भावनाओ की नदी के दोनो ओर दौड़ते हुए.
अब तो एक ही विनती हैं तुमसे मेरी की
मुझे अब मुक्त कर दो.
Monday, June 21, 2010
Thursday, June 3, 2010
जब भी ज़िक्र होता हैं तुम्हारा
जब भी ज़िक्र होता हैं तुम्हारा
मैं चला जाता हूँ एक आत्मावलोकन की अवस्था मे
हो जाती हैं अवस्था मन की ध्यान सी
एक एक पल जो बिताए साथ
खुलने लगते हैं नेत्रपतल पर चलचित्र से
खुद पर आश्चर्य होता हैं की इतने दिन बाद भी
तुम काबिज हो इस दिल पर और तुमने
इसमे कई सेंधमारों से अपनी रक्षा की हैं.
मैं समझ नही पता की
तुम्हारा अब तक मेरे दिल मे टिके रहने का औचित्य क्या है?
आख़िर तुम क्या सिद्ध करना चाहती हो?
तुम तो मेरी सबसे प्रिय सखा रही हो
क्या तुम्हे ये शोभा देता हैं की
तुम मेरी मनः चेतना पर यू सवार
किसी आवारा हिरनी इधर उधर फिरती रहो.
पर सच कहूँ.
तुम्हारा मेरे मनःस्थल पर यूँ फिरना.
बार बार मेरे अहम को चुनौती देता है
और उस चुनौती का मंथन
हर बार मुझसे ऐसा असाध्य कार्य करवा ले जाती हैं
की हर बार मैं आश्चर्यचकित हो जाता हूँ.
मैं चला जाता हूँ एक आत्मावलोकन की अवस्था मे
हो जाती हैं अवस्था मन की ध्यान सी
एक एक पल जो बिताए साथ
खुलने लगते हैं नेत्रपतल पर चलचित्र से
खुद पर आश्चर्य होता हैं की इतने दिन बाद भी
तुम काबिज हो इस दिल पर और तुमने
इसमे कई सेंधमारों से अपनी रक्षा की हैं.
मैं समझ नही पता की
तुम्हारा अब तक मेरे दिल मे टिके रहने का औचित्य क्या है?
आख़िर तुम क्या सिद्ध करना चाहती हो?
तुम तो मेरी सबसे प्रिय सखा रही हो
क्या तुम्हे ये शोभा देता हैं की
तुम मेरी मनः चेतना पर यू सवार
किसी आवारा हिरनी इधर उधर फिरती रहो.
पर सच कहूँ.
तुम्हारा मेरे मनःस्थल पर यूँ फिरना.
बार बार मेरे अहम को चुनौती देता है
और उस चुनौती का मंथन
हर बार मुझसे ऐसा असाध्य कार्य करवा ले जाती हैं
की हर बार मैं आश्चर्यचकित हो जाता हूँ.
मकानमालिक
मुझे एक नया घर तलाशना हैं.
एक समय,
जब तुमने मुझे अपने अपने घर मे पनाह दिया था.
मैने तुम्हारे घर को ही अपना घर समझ लिया था.
तुम्हारे बिस्तर को ही अपना बिस्तर और
तुम्हारे गुसलखाने को ही अपना गुसलखाना समझ लिया था.
मैने भी तो भरे थे उसके दीवारों पर रंग तुम्हारे साथ मिल कर
और लगाए थे उसके बगीचे मे गुलाब के फूल
ये सोच कर की हमारा ये घर हमेशा खिलखिलता रहेगा
इन गुलाबी फूलों की तरह.
पर एक दिन हर एक मकानमालिक की तरह तुमने,
मुझे अपने घर से निकल जाने का फरमान सुना ही दिया.
शायद कुछ और लोग, तुम्हारे अपने आने वाले थे और
अब तुम्हारे घर मे मेरे लिए लिए अब जगह ना थी.
मैं एकाएक गृहस्थ से सड़क पर था.
पर सच कहता हूँ,
सड़क पर सोते हुए भी, मेरे आलिंगन मे तुम ही थी.
इस उम्मीद के साथ की कल फिर हम वो घर साझा करेंगे.
एक समय,
जब तुमने मुझे अपने अपने घर मे पनाह दिया था.
मैने तुम्हारे घर को ही अपना घर समझ लिया था.
तुम्हारे बिस्तर को ही अपना बिस्तर और
तुम्हारे गुसलखाने को ही अपना गुसलखाना समझ लिया था.
मैने भी तो भरे थे उसके दीवारों पर रंग तुम्हारे साथ मिल कर
और लगाए थे उसके बगीचे मे गुलाब के फूल
ये सोच कर की हमारा ये घर हमेशा खिलखिलता रहेगा
इन गुलाबी फूलों की तरह.
पर एक दिन हर एक मकानमालिक की तरह तुमने,
मुझे अपने घर से निकल जाने का फरमान सुना ही दिया.
शायद कुछ और लोग, तुम्हारे अपने आने वाले थे और
अब तुम्हारे घर मे मेरे लिए लिए अब जगह ना थी.
मैं एकाएक गृहस्थ से सड़क पर था.
पर सच कहता हूँ,
सड़क पर सोते हुए भी, मेरे आलिंगन मे तुम ही थी.
इस उम्मीद के साथ की कल फिर हम वो घर साझा करेंगे.
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